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लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात के नाडियाद में 31 जुलाई 1875 में उनके ननिहाल में हुआ था। जो कि उनके पिता श्री झबेरभाई  पटेल और माता लाडबा बाई की चौथी संतान थे। उनका पैतृक गॉव खेड़ा जिले में कारमसद  था। झबेरभाई रानी लक्ष्मीबाई और नानासाहेब की सेना में सिपाही थे।उन्होंने  वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्रामकी लड़ाई भी पुरे जोश के साथ लड़ी थी। 


एक गरीब बच्चे से लेकर मिसाइल मेन तक की कहानी




सरदार वल्लभभाई पटेल की शिक्षा

वल्लभभाई पटेल की प्राइमरी शिक्षा कारमसद  में पूरी हुई।  वर्ष 1893 में उनकी शादी झबेर बा के साथ सम्पन्न हुआ।परन्तु उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढाई के रस्ते में नहीं आने दिया और वर्ष 1897 में गुजरात के बोरसद गांव से उन्होंने अपनी मेट्रिक परीक्षा पास की।वर्ष 1900 में उन्होंने जिला अधिवक्ता की परीक्षा पास की और गोधरा में वकालत की प्रेक्टिस शुरू की। वर्ष 1902 में बोरसप आकर वकालत करने लगे। उनकी कार्यकुशलता और प्रतिभा ने उन्हें जल्दी ही प्रसिद्ध कर दिया। 

एक बार की बात है कि उनकी आँख के नीचे चोट लग गई , वैधजी ने बताया कि अगर गरम लोहे की छड़ को उस चोट पर लगाया जाये तो वह बिलकुल ठीक हो सकते है। किसी की भी ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई। फिर स्वयं पटेलभाई ने लोहे की गरम छड़ कोअपनी आँख के नीचे  लगी चोट पर लगा लिया और ठीक हो गए। ये उनकी मजबूत इच्छाशक्ति का उदाहरण है।तभी से उनको लौह  पुरुष कहा जाने लगा।  

वल्लभ भाई की कर्त्तव्य निष्ठा 

11 जनवरी 1909 सोमवार का दिन था। पटेलभाई कोर्ट में केस लड़ रहे थे तभी उनको एक तार मिला जिसमे उनकी पत्नी झबेरबा की मृत्यु का समाचार था। उसे पढ़कर उन्होंने चुपचाप उस तर को अपनी जेब में रखा और केस लड़ने लगे। अगले दो घंटो तक केस पर जिरह की और केस जीत गए। बाद में न्यायाधीश महोदय व अन्य वकीलों को उनकी पत्नी की मृत्यु के बारे में पता चला। वल्लभभाई पटेल से जब ये पूछा गया कि आपने अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार जानकर भी केस क्यों लड़ा ?उनका जवाब था -"मै अपना फ़र्ज़ निभा रहा था ,जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मै उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था?"

जुलाई 1910 में इंग्लैंड के मिडिल टेम्पल में लॉ की पढाई के लिए दाखिला लिया।  कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने आधे समय में ही अपना कोर्स पूरा कर लिया। इसके लिए उन्हें पचास पौंड का इनाम मिला। वर्ष 1913 में मिडिल टेम्पल से बैरिस्टर बने।भारत आकर उन्होंने एक अग्रिम पंक्ति के कुशल क्रिमिनल लॉयर के रूप में अपनी सेवाएं दी।

मार्च 1914 में उनके पिता झबेरभाई पटेल का देहांत हुआ।  वर्ष 1915 में वल्लभ भाई गुजरात सभा के मेंबर बनाये गए। वर्ष 1917 में वल्लभ भाई अहमदबाद म्युनिसिपलिटी के कॉउंसलर बनाये गए सिनेटरी व पब्लिक वर्क्स कमैटी के चेयरमैन भी बने।

नवंबर 1917  में पहली बार वल्लभभाई सीधे महात्मागांधीजी  के संपर्क में आये। 

1918 में बेगार प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई और कमिश्नर पर दवाब बनाकर इस प्रथा का अंत किया। 1918 में अहमदाबाद जिले में अकाल राहत का बेहतर तरीके से प्रबंधन किया। अहमदाबाद म्युनिसिपल बोर्ड से अच्छी धनराशि गुजरात सभा को मंजूर करवाई जिससे इन्फ़्लुएन्ज़ा जैसी महामारी से निपटने के लिए एक अस्थायी अस्पताल बनाया गया। वर्ष 1918 में ही सरकार द्वारा अकाल प्रभावित खेड़ा जिले में वसूले जा रहे लैंड रेवेन्यू के विरुद्ध नो टैक्स आंदोलन का सफल नेतृत्व कर वसूली को माफ़ करवाया।

वर्ष 1919 में वल्लभभाई पटेल ने गुजरात सभा को गुजरात सूबे की कांग्रेस कमिटी में बदल दिया। जिसके सचिव वल्लभभाई पटेल और अध्यक्ष महात्मा गाँधी  बने।  

वर्ष 1920 में वल्लभभाई पटेल असहयोग आंदोलन से जुड़कर स्वदेशी आंदोलन के तहत सभी  विदेशी चीज़ो को त्याग दिया और स्वदेशी अपनाकर कुर्ता  ,धोती और चप्पल  पहनने लगे।  अहमदाबाद नगरपालिका चुनावों  मेंजिसके विरोध में 

तिलक स्वराज फण्ड के लिए दस लाख रुपये  एकत्रित किये।  गुजरात में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के तीन लाख सदस्य बनाये। 

वर्ष 1921 में वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस के 36वें अहमदाबाद अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष बने।  वें  गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पहले अध्यक्ष भी बने। 

वर्ष 1922 में ब्रिटिश सरकार ने बोरसद  तालुका की समस्त जनता पर हड़िया नाम से एक दंडात्मक कर थोप दिया जिसके विरोध में वल्लभभाई पटेल ने वर्ष 1923 तक बोरसद में सत्याग्रह किया और इससे निजात दिलाई।उनकी इस जीत के बाद से महात्मा गाँधी वल्लभ भाई पटेल को "किंग ऑफ़ बोरसद " कहने लगे।इसी दौरान वर्ष 1922  में  नागपुर में राष्ट्रिय झंडा आंदोलन का सफल नेतृत्व कियाऔर गुजरात विद्यापीठ के लिए रंगून से करीब  दस लाख रुपये एकत्र किये। 

वर्ष 1923 में अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव जीतकर उसके अध्यक्ष बने। 

वर्ष 1927 में गुजरात में भयानक बाढ़ आयी और उससे निपटने के लिए वल्लभ भाई पटेल ने ब्रिटिश सरकार से एक करोड़ रुपये मंजूर करवाए।

वर्ष 1928 मेंपटेल ने अहमदाबाद नगरपालिका अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर मोरबी में हुए काठियावाड़ सम्मेलन की अध्यक्षता की।

सरदार की उपाधि 

वर्ष 1928 में ही खेड़ा जिले में किसानों के साथ मिलकर बारडोली में नो टैक्स सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया ,जहाँ किसानों  ने मिलकर वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि से नवाज़ा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भी इस उपाधि को सार्वजनिक मान्यता प्रदान कर दी गई। 

वर्ष 1929 में महाराष्ट्र राजनैतिक सम्मलेन की अध्यक्षता की। 

वल्लभ भाई की सादगी

7 मार्च 1930  कोमहात्मा गांधीजी के नमक सत्याग्रह के पक्ष में प्रचार करने के कारण सरदार वल्लभ भाई को गिरफ्तार कर लिया गया और साबरमती जेल में दाल दिया गया। जेल में सरदार पटेल को बड़ा नेता होने के कारण ए  क्लास खाना व रहने का इंतेज़ाम  किया गया जिसके  विरोध में सरदार पटेल ने भूख हड़ताल कर दी। उनके अनुरोध को स्वीकार कर जेल अधीक्षक ने उन्हें सी क्लास बैरक में रखा। सरदार पटेल संगठन के प्रत्येक सदस्य को बराबर का मानते थे। 26 जून 1930 को उन्हें रिहा कर दिया गया और 31 जुलाई 1930 को उन्हें वापस कारावास की सजा दे दी गई। 

1931 में सरदार  भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस के कराची अधिवेशन की अध्यक्षता की। वायसराय लार्ड इरविन के साथ शिमला वार्ता में महात्मा गांधीजी के साथ रहे। जनवरी 1932 से जुलाई 1932 तक सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान यरवडा  जेल में महात्मा गांधीजी के साथ कैद रहे। इसी दौरान सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल  जिनेवा में देहांत हो गया। आंत की गंभीर बीमारी के कारण  सरदार पटेल को जुलाई 1934 में रिहा करना पड़ा। 

वर्ष 1935 से 1942 तक सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस के संसदीय बोर्ड के चेयरमैन रहे। वर्ष 1937  से 1939 तक आठ सूबो  में कोंग्रेसी मंत्रिमंडलों के पर्यवेक्षक रहे। चुनावों  में उम्मीदवारों के चयन का कार्यभार भी सरदार पटेल के कंधो पर ही था। 

18 नवंबर 1940 को ग्रेट ब्रिटेन  पर भारत की स्वतंत्रता का दवाब बनाने हेतु महात्मा गांधीजी के सत्याग्रह में भाग लेने पर 18 नवंबर 1940 को डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत सरदार पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया। आंत की गंभीर बीमारी के कारण 8 अगस्त 1941 को इन्हे फिर से रिहा कर दिया गया। 

अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने पर अहमदनगर फोर्ट में जवाहरलाल नेहरू  , चन्द्रशेखर  आज़ाद और कई बड़े नेताओं  के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी जेल में दाल दिया गया. बाद में 1945 की शुरुआत में यरवडा  जेल में शिफ्ट कर दिया गया। जून 1945 में शिमला वार्ता में भाग लेने के लिए इन लोगो को  रिहा करना पड़ा। शिमला वार्ता के बाद भारत की आज़ादी का रास्ता साफ़ हुआ। 

2 सितम्बर 1946 को सरदार पटेल को अंतरिम सरकार  में गृह मंत्री एवं सूचना व प्रसारण मंत्री बने। 

4 अप्रैल 1947 को वल्लभ विद्यानगर में विट्ठल भाईमहाविद्यालय का उद्घाटन किया। 

सरदार वल्लभ भाई पटेल को लोह पुरुष क्यों कहा जाता है ?

25 जून 1947 को भारत सरकार ने 562 रियासतों के लिए सरदार पटेल के अधीन डिपार्टमेंट ऑफ़ (प्रिंसली )स्टेट्स बनाने का निर्णय किया। पटेल साहब के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि सभी 562 रियासतों को एक अखंड राष्ट्र के रूप में पिरोया जा सका। जबकि ब्रिटिश सरकार  तो जाते जाते भी यही चाहतीं  थी कि भारत की ये रियासतें  कभी भी एक होकर नहीं रहे। ब्रिटिश सर्कार ने रियासतों को ये स्वतंत्रता देदी कि वे चाहे तो स्वयं अपनी रियासत को चलाये चाहे तो आपस मर एक होकर भारत का हिस्सा बने। इसी बात ने उन रियासतकालीन राजाओं  में फुट डालने का काम किया। ऐसे माहौल में भी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हिम्मत नहीं हरी और उन सभी 562 रियासतों के हुक्मरानो से मिलकर उन्हें समझाया और अखंड भारत के सपने को साकार किया। 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ और सरदार पटेल को स्वतंत्र भारत का पहला उप प्रधानमंत्री ,गृह मंत्री ,शाही राज्यमंत्री (रियासत)एवं सूचना एवं प्रसारण मंत्रीबनाया गया। यहाँ ये बताना गलत नहीं होगा कि  चूँकि वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री सरदार पटेल को ही बनना  चाहिए था लकिन जवाहरलाल नेहरू  भी प्रधानमंत्री बनना  चाहते थे और उनकी इसी इच्छा के आगे सरदार पटेल ने ये निर्णय महात्मा गाँधी पर ही छोड़ दिया। सरदार पटेल हमेशा संगठन की  मजबूती  और एकता पर ही बल दिया करते थे।इसलिए वे जहाँ भी मतभेद होता वहां संगठन के फायदे व  नुकसान को ध्यान   में रखकर ही निर्णय लेते थे चाहे इससे उन्हें व्यक्तिगत नुकसान हो रहा हो ,संगठन में  सौहार्द बनाये रखने के लिए सरदार पटेलकोई सा भी नुकसान ख़ुशी ख़ुशी सहन कर लेते थे। इसीलिए उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को गांधीजी द्वारा प्रधानमंत्री बनाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उनके फैसले को स्वीकार कर लिया। जबकि वास्तव में जब गांधीजी द्वारा प्रधानमंत्री  पद के लिए कांग्रेस कमिटी में वोट माँगा  तो आपको आश्चर्य होगा की 15 में से 12 वोट सरदार पटेल को ही मिले थे। लेकिन गांधीजी के आदेश को नतमस्तक होकर पटेल ने माना। 

13 नवंबर 1947 को सोमनाथ महादेव मंदिर का दौरा कर उसके पुनर्निर्माण  करने का निश्चय किया. 

सरदार वल्लभभाई पटेल को कई विश्वविद्यालयो से   "डॉक्टर ऑफ़ लॉ (DOCTOR OF LAW}की डिग्री   भी मिली- 

3 नवंबर 1948 को नागपुर विश्वविद्यालय ने ,

25 नवंबर 1948 को बनारस विश्वविद्यालय ने, 

27 नवंबर 1948 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने,  

26 फरवरी 1949 उस्मानिया विश्वविद्यालय ने   पटेल साहब को ये डिग्री  प्रदान की।

15 फरवरी 1948 को भावनगर राज्य संघ की स्थापना की। 

7 अप्रैल 1948 को राजस्थान राज्य संघ की स्थापना की। 

22 अप्रैल 1948 को मध्य भारत संघ की स्थापना का ऐलान  किया। 

13 सितम्बर  से 16 सितम्बर 1948 में हैदराबाद पुलिस एक्शन कर सेटल किया। 

एक समय स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब अमेरिका ,इंग्लैंड  और कनाडा की विदेश यात्रा पर गए तब उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 7 अक्टूबर 1949 से 15 नवंबर 1949 तक जवाहरलाल  नेहरू की अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री की सभी ज़िम्मेदारियों  को  सफलतापूर्वक निभाया। 

15 दिसंबर 1950   के दिन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का बॉम्बे के बिड़ला हाउस में दूसरा दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।जहाँ पर उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया. 

सरदार वल्लभ भाई पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में उन्हें भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय  सम्मान  "भारत रत्न  " से सम्मानित किया गया। यह अवार्ड उनके पोते श्री विपिन भाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया।   

2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल के जनम दिन को भारत में "राष्ट्रिय एकता दिवस" के रूप में मनाने का एलान किया। 


लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अविस्मरणीय योगदानों को जीवंत  बनाये रखने के लिए गुजरात के नर्मदा में विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा "स्टेचू ऑफ़ यूनिटी "स्थापित की गयी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के करकमलों से 31 अक्टूबर 2018 को पटेल साहब की 143 वीं जयंती पर किया गया। इस कांस्य प्रतिमा की ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट )है। इस प्रतिमा को बनाने में करीब 2989 करोड़ रुपये की लागत आयी। इस प्रतिमा को लार्सन एंड टुब्रो नमक कंपनी ने बनाया है। इसके वास्तुकार जोसेफ  मेना  है। स्टेचू ऑफ़ यूनिटी  सरदार सरोवर बांध से मात्र 3. 2 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ पर एक म्यूज़ियम बनाया गया है जहाँ  लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी को बहुत प्रभावी तरीके से दिखाया गया है।

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