मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं,
आज खाली बैठा ये याद कर रहा हूं,
मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं
आलस ने कहने से रोक दिया,मां मैं ये काम कर रहा हूं
घर में हूं रुका ,फिर भी बस आराम कर रहा हूं
मन ही मन चिंतन कर रहा हूं, मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं
पूरा दिन मोबाइल चलाया,आंखों को इतना थकाया
जब मन किया खाना खाया,ना बाहर ना अंदर कदमो को हिलाया
हर बीतते क्षण के साथ,शरीर को नरम किए जा रहा हूं
अपनी कल्पनाओं में ही मेहनत कर रहा,वास्तविकता में मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं
जब नहीं होता समय, तब सोचता मंजिल तक कैसे पोहच पाऊंगा
जब समय आया झोली में, तब मंजिल को तवज्जो नहीं दे रहा हूं
अरे भई इतना बुरा भला ना कहो, इतनी ना करो आलोचना,
मैं अन्तर्गत इस समझ का निर्माण कर रहा हूं,
मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं
मैं दूसरों पर तो काफी ध्यान दे रहा!
उनकी अच्छाई पर प्रशंशा और गलती पर निंदा,
इतनी बार कर रहा हूं,
खुद को देखना ही भूल गया
अरे भाई मारो मुझे मारो , क्यूंकि मैं इतना वक्त बर्बाद कर रहा हूं|
एक चीज आयी समझ अभी अभी,
अभिव्यक्त कर रहा मैं बन के कवि
विचार अपने लिख रहा,कलम का भले ही इस्तेमाल कर रहा हूं
लेकिन कुछ और पल हैं मैंने खो दिए,
फिर मैं इतना वक्त बर्बाद कर रहा हूं|
तुम्हारे लिए नहीं है रे,अपने लिए इस बार लिख रहा हूं
जब कभी फिर भटकुंगा,धुंधला जाएगी जो मंजिलें,
इन्हीं पन्नों पर लौटने को ,खुद को तैयार कर रहा हूं
ताकि मुझे याद आ जाए,मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं
इस बार बस एक फ़रियाद कर रहा हूं,की फिर मुझे अपने आप को कहना ना पढ़े,
की मैं कितना वक्त बर्बाद कर रहा हूं|
- श्रीयांश अग्रवाल
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