Moral story in hindi
जंगल का डाकू
namaskar dosto , yhe jungle kahani ma aap dekhenge ki kese ek sadhu ne daku ko acha insan bana diya .iss kahani ko ache se padhe. aur aap janege ki koi bhi agar kisi apne ke liy bhi bura karta hai to bhi sirf use hi uska pap bhogna padta hai.
इस कहानी में हम देखेंगे की कैसे एक साधु ने एक खतरनाक डाकू को एक ईमानदार इंसान में एक ही दिन में जिंदगी भर के लिए बदल दिया।
इस कहानी में हम देखेंगे की कैसे एक साधु ने एक खतरनाक डाकू को एक ईमानदार इंसान में एक ही दिन में जिंदगी भर के लिए बदल दिया।
जंगल का डाकू - jungle kahani
एक बार की बात है। एक जंगल में एक डाकू और उसका परिवार रहता था। डाकू के घर के बहार से जाते हुए लोगों को मारकर उनका पैसा लूट कर अपने परिवार को उन्ही पैसों से खाना खिलाता था। और जंगल में शिकार करके अपने परिवार का पेट भरता था। ऐसा बहुत दिनों तक चलता रहा। डाकू बहुत सारे लोगों को और जानवरों को मार चुका था। एक बार उसके रास्ते से एक साधु जा रहा था। और तभी वह डाकू उस साधु के सामने आता है। डाकू साधु से कहता है," जो भी माल तुम्हारे पास है मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगा।", तो साधु कहता ,"है मुझे यह बड़ी मुश्किल से मिला है। मैं तुम्हें यह नहीं दे सकता।", तो डाकू कहता है। तुम मुझे नहीं जानते ,"मैंने बहुत सारे लोगों को लूटने के लिए मार गिराया है। अब लगता है तुम्हारी बारी है।", तो साधु डाकू से पूछता है तुम यही सब किसके लिए कऱ रहे हो ? तो डाकू कहता है ,"मेरे परिवार के लिए। ", साधू कहता है ,"ठीक है मैं अपना सारा पैसा तुम्हें देने को तैयार हूं परंतु तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी।", तो डाकू पूछता ,"कोनसी बात? ", तो साधु कहता है ,"एक बार तुम अपने परिवार के हर सदस्य से पूछो। कि क्या वह तुम्हारा पाप भोगने को तैयार है।," डाकू कहता है ,"मुझे तुम मूर्ख ना समझो। मुझे पता है अगर मैं यहां से अपने परिवार के पास चला गया तो तुम यहां से भाग जाओगे। मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोडूंगा मैं तुम्हें पेड़ से बांधकर जाऊंगा।," डाकू साधु को पेड़ से बांध देता है। और फिर अपने परिवार के पास जाता है। डाकू के परिवार में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। सबसे पहले वह डाकू अपनी पत्नी के पास जाता है। और पूछता है। ,"क्या तुम मेरा पाप मेरे साथ भोगने को तैयार हो।", तो डाकू की पत्नी कहती है ,"यह पाप आप करते हैं और मैं इसकी भागीदार क्यों बनू।," फिर डाकू अपने बेटे के पास जाता है। और वही पूछता है। तो डाकू का बेटा कहता है ," मैं कोई पाप नहीं करता तो मैं आपके पाप का भागीदार क्यों बनू।",तो डाकू दुखी होकर अपने दूसरे बेटे के पास जाता है और वही पूछता है। तो दूसरा बेटा भी उसके पाप का भागीदार बनने के लिए मना कर देता है। डाकू बहुत ही हैरान और दुखी होकर सोचने लगता है ,"यह पाप मैं अपने परिवार के लिए ही तो करता हूं ,पर जब उसे भोगने की बात आती है तो कोई भी आगे नहीं आता। फिर मैं यह सारा पाप अपने ऊपर ही क्यों लूं? अब मैं कोई गलत काम नहीं करूंगा।", यह सोचकर वह साधु के पास चला जाता है।डाकू साधु को पेड़ से खोल देता है और उनसे माफ़ी मांगने लगा। और साधु से कहता है की ," अगर आप मुझे इतना पाप करने पर भी नहीं समझाते तो मैं पता नहीं और कितना पाप अपने सर पर ले लेता। अब ईमानदारी और मेहनत के बलबूते पर मैं अपने परिवार की जरुरत पूरी करूँगा।", इसी तरह उस साधु ने उस डाकू का ह्रदय परिवर्तन कर दिया। और डाकू ने अपने परिवार को पालने के लिए खेती का काम शुरू किया। जो भी धन डाकू ने लोगों को मारकर छीना था वह सारा धन उसने गरीबों में बांट दिया।
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1 comment:
Story is good and worthful
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