रक्षाबंधन एक ऐसा पवित्र त्यौहार जो हर एक बहन और भाई के लिए खास है। पर क्या आप जानते है की क्यों रक्षाबंधन त्योंहार मनाया है। रक्षाबंधन की पूरी कहानी आपको यहां पढ़ने मिलेगी। अगर आप रक्षाबंधन की कुछ इमेज चाहते है तो यह क्लिक कीजिये। रक्षाबंधन की कहानी के साथ आपको रक्षाबंधन की कुश अद्भुत जानकारी भी पड़ने को मिलेगी।
रक्षाबंधन की कहानी
एक बार की बात है दैत्य राज और श्री भक्त प्रह्लाद के पुत्र राजा बलि देवराज इंद्र से युद्ध में परास्त हो गए और मारे गए लेकिन राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने अपनी वैदिक शिक्षा से जिनका सर धड़ से अलग नहीं हुआ था, उन सभी को बचा लिया। महाराजा बलि का सर भी धड़ से अलग नहीं हुआ था इसलिए वह भी बच गए और उनके कई साथी भी बच गए। शुक्राचार्य ने महाराज से इस हार के बाद कहा कि हे राजन! आपको इस हार का बदला लेना चाहिए। लेकिन उसके लिए आपको बल की आवश्यकता है उसके लिए आपको 100 यज्ञ बिना विघ्न कराने होंगे| अगर ऐसा हुआ तो आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता। अपने गुरु के कहने पर राजा बलि ने 100 यज्ञ करने का प्रण लिया और यज्ञ करवाना शुरू किया। 99 यज्ञ बिना विघ्न के संपन्न हो गए। यह देखकर देवता चिंतित हो गए और भगवान श्री नारायण के पास गए और उनसे सहायता की प्रार्थना की। श्री नारायण ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और एक छोटे ब्राह्मण कुमार का रूप धारण किया और मृत्यु लोक में पधारे।
जब राजा बलि अपना यज्ञ करने के लिए अपनी यज्ञशाला में अपने आसन पर बैठ रहे थे तभी भगवान याचक बनकर यज्ञशाला के द्वारपालों से राजा बलि से मिलने की हट पकड़ कर बैठ गए| अंत में द्वारपालों को विवश होकर राजा बलि से आने की प्रार्थना करनी पड़ी। यज्ञ में बैठे एक साधु ने कहा कि हे राजन यज्ञ पूरा होने से पहले अब आप उठ नहीं सकते। इस बात पर राजा बलि ने कहा महात्मा यज्ञ करने के भी कुछ नियम होते हैं। जब एक राजा के राज्य में कोई संतुष्ट नहीं, तब तक यज्ञ कैसे हो सकता है। ऐसा कहकर राजा बलि द्वार पर गए और भगवान को ब्राह्मण कुमार समझ कर उनके पैर दोहे और आप यहां आए इस समय मेरी यज्ञशाला पवित्र हो गई। कहीं आप यहां किस प्रयोजन से पधारे हैं? भगवान ने अपना नाम बामन बताते हुए कहा, हे राजन, मैं यहां आपसे कुछ मांगने आया हूं। राजा बलि ने कहा कि बताइए आपको क्या चाहिए? मैं तो पूरे ब्रह्मांड का राजा हूं। आप जो चाहे वह मुझसे मांग सकते हैं। आपको मैं मोती या कुछ भी दे सकता हूं। बताइए आपको क्या चाहिए? भगवान वामन कहने लगे, मुझे तो मोती मानक कुछ नहीं चाहिए। मुझे तुम मेरे यज्ञशाला के लिए मेरे तीन पग धरती चाहिए। राजा बलि ने उनकी मस्करी उड़ाते हुए कहा, अरे मूर्ख बच्चे पैरों से तीन पग धरती लेकर क्या करोगे? मुझसे तुम इतना मांगो कि कभी किसी से मांगने की जरूरत ही ना पड़े। अब भी समय है सोच लो ब्राहमण कुमार। भगवान वामन ने कहा, यह सब चीजें तो लालची व्यक्तियों की मांग है। मुझे तो मेरे तीन पग धरती ही चाहिए। राजा बलि ने कहा, अच्छा ठीक है, परंतु इतनी छोटी सी मांग आप मेंरे द्वारपालों से भी तो मांग सकते थे। आपने मुझे सिर्फ तीन पग धरती मांगने के लिए क्यों बुलाया? भगवान ने कहा 'हे राजन अगर मै आपके सेवको से तीन पग धरती माँग लेता तो बाद में आप इन निर्दोश सेवको को इस बात का दंड देते की राजा आप थे तो इन्होने धरती क्यों दी।' फिर राजा बली ने कहा 'ठीक हे महात्मन आप तीन पग धरती नाप कर ले लीजिए और मै भूमि देने संकल्प कर लेता हूँ।'
जैसे ही राजा बली ने संकल्प किया वैसे ही भगवन इतने बड़े हो गए की उन्होंने एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग को नाप लिया और फिर भगवान वामन ने कहा राजन अपने मुझे तीन पग धरती देने का संकल्प लिया था पर मैने दो पग में ही वो सब कुछ नाप लिया जो भी आपके पास था अब मुझे बताइये की मै तीसरा पग खा राखु। राजा बलि ने थोड़ा सोचा फिर कहा 'प्रभु मै ये तो नहीं जानता की आप कौन है। परंतु ,मैं मेरा वचन झूठा नहीं होने दूंगा इसलिए मेरे पास आपको तीसरा पग रखने के लिए एक जगह सेष है। आप तीसरा पग मेरे सर पर रखिये इसके अतिरिक्त मेरे पास अब और कोई जगह नहीं है।' भगवान वामन जी ने तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा। और राजा बलि का वचन पूरा हो गया।
इस पर भगवन बहुत प्रसन्न हुए और वे अपने वास्तविक रूप मे आ गए। भगवन ने राजा बलि से कहा 'हे राजन हम तुम पर बहुत प्रसन्न है मांगो तुम्हे क्या चाहिए।' राजा बलि हाथ जोड़कर कहने लगे भगवन अगर आप मुझ पर इतना ही प्रसन्न है तो आप मुझे यह वचन दीजिये की आप सदा मेरे समुख रहेंगे। इस वचन को पूरा करने के लिए भगवन राजा बलि के द्वारपाल बन गए। यह देख कर माता लक्ष्मी जी व्याकुल हो गयी और वे मदत के लिए देवऋषि श्री नारद जी के पास जाती है। फिर नारद परामर्श दिया और कहा 'हे देवी अब राजा बलि को एक राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बसना ले और भेट स्वरुप भगवन वामन को ले आये। लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया। वे राखी लेकर राजा बलि के पास जाती है और उन्हें राखी बांधकर उनसे कहती है 'आज मै आपको अपना भाई बना रही हूँ इसलिए मै आपको राखी बांध रही हूँ। ' फिर राजा बलि ने कहा की 'आज मै भी आपका भाई हूँ और आपकी रक्षा मेरी जिम्मेदारी है और इस शुभ अवसर पर मै आपको कुछ भेट देना चाहता हूँ। जो भी आप मुझसे है मै आपको भेट स्वारूप दूंगा। ' तो लक्समी जी ने अपने पति विष्णु जी को मांग लिया। जो की वामन अवतार मै राजा बलि के द्वारपाल बनकर खड़े थे। तो राजा बलि ने लक्ष्मी जी से कहा की 'प्रभु ने मुझे वचन वे हमेशा मेरे समक्ष रहेंगे परन्तु आपके इच्छा अनुसार भेट का वचन भी दे चूका हूँ इसलिए मै प्रभु को 6 महीनो लिए वचन मुक्त करता हूँ। बाकि 6 महीने मेरे समक्ष ही रहेंगे। '
इस दिन से सावन मास की हर अंतिम पूर्णिमा को भाई बहन का यही पावन त्योंहार राखी मनाया जाता है। माता लक्ष्मी की तरह सभी बहने अपने भाइयो को राखी बांधती है। उत्तरी भारत में इस त्यौहार को कजरी पूनम भी कहा जाता है इस दिन वह गेहूँ के बीज बोए जाते है। पश्चिमी भारत में इसे झूलन पूर्णिमा भी कहा जाता है इस दिन वहा राधे कृष्णा जी की मूर्ति को पालने में रख कर झुलाया जाता है। इस दिन कई लोग अपनी यग्यो पवित भी बदलते है इसलिए इसे झंघाना पूर्णिमा भी कहा जाता है। दक्षिणी भारत मै इसे झंघाना पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन वह के लोग समुद्र देवता की पूजा है।
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